पारम्परिक देवी-देवताओं के लोकगीत

मावलीया का गीत

मावलियो कै ए कोसां मैं थारो देवरो,
मावलियो कै ए कोसां मंै गज नीम,
सदा ऐ सुरंगी मेरी मावलो।
मावलो अस्सी ए कोसां में थारो देवरो
मावलो सौ ए कोसां मैं गज नीम, सदा ए सुरंग मेरी मावलो।
मावलो कै लख आवै थारै बांझड़ी कै लख बालुरा री माऐ।
मावलो नौ लख आवै थारै बांझड़ी,
दस लख बालुरा री माऐ, सदा ए सुरंगी मेरी मावलो।
मावलो के धन मांगे बांझड़ी, के धन बालुरा री माए।
मावलो पुत जै माॅग बांझड़ी, अन्न-धन, बालुरा री माए।
जातन पूत तो देस्या बांझड़ी, अन्न-धन बालूरा री माए
जातन हर्या वन सुखा करै, सुखा नै हर्या कर दे,
सदा ए सुरंगी मेरी मावलो।
मावलो केरै चढ़ै थारे देवरै के लगै थारै भोग,
चढ़ै ए चढ़ावै थारै चूरमा, मावलो उजले चावलियां रो भोग,
मावलो रात बसो ए कुआं-बावड़ी, दिन में चढ़ौ ए आकाष,
सदा ए सुरंगी मेरी मावलो।
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